जातिगत आरक्षण और वोट बैंक की राजनीति

आज देश में बदलाव की लहर है। सत्ता के बदलाव की नही, व्यवस्था के बदलाव की। हर जाति और वर्ग का व्यक्ति एक पारदर्शी व्यवस्था चाहता है,भ्रष्टाचार से मुक्त, समान अवसरों से युक्त और न्याय पर आधारित व्यवस्था की समाज को दरकार है। अब न तो आरक्षण जैसे मुद्दे लोगों को वोट देने के लिये प्रेरित कर सकते है और न ही मुफ्त में साइकिल और कम्प्यूटर बांटने वाले। यदि ऐसा होता तो उत्तरप्रदेश में कांग्रेस 3 दशकों से सत्ता से बाहर नही होती। देश में विगत 10 वषों से कांग्रेस पार्टी का शासन है और स्वतंत्र भारत के इतिहास में वह इस वक्त सबसे कमजोर दशा में है, ऐसे में सिर्फ कांग्रेस ही जातिगत आरक्षण को समाप्त कर आर्थिक आधार पर लागू करने का जोखिम ले सकती है। कांग्रेस ने जब-जब भी जोखिम लेकर व्यवस्थाओं को बदला है, लोगों ने उसे अपने सिर आँखों पर बिठाया है। जनार्दन द्विवेदी की बातों में काफी गहराई और पार्टी तथा समाज का हित छुपा हुआ है। गत वर्ष सर्वोच्च न्यायालय ने सजायाफ्ता सांसदों और विधायकों की सदस्यता समाप्त करने और उनके चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने का फैसला दिया था। इस फैसले के बाद सारे राजनीतिक दल एक हो गये थे और सरकार इस फैसले के विरूद्ध अध्यादेश लेकर आ गई थी। राहुल गाँधी ने उस अध्यादेश को फाड़कर फेंक देने का जो साहस दिखाया था वैसा ही साहस उन्हे जातिगत आरक्षण के मामले में दिखाने की आवश्यकता है।

 

आज देश को एक बड़े बदलाव की जरूरत है। आरक्षण वर्तमान में सरकारी नौकरियां हासिल करने का माध्यम बन गया है। आज इसका सामाजिक समानता से कोई सरोकार नही रह गया है। देश का प्रत्येक युवा आज यह प्रश्न करना चाहता है कि आई.ए.एस./आई.पी.एस. अथवा अन्य उच्च पदों पर बैठे आरक्षित वर्ग के व्यक्तियों या इस वर्ग के बड़े उद्योगपतियों के बच्चों को नौकरियों में आरक्षण क्या सिर्फ इसलिये दिया जाये कि वे जाति विशेष में पैदा हुये है? क्या वास्तव में उन बच्चों को अपनी नैसर्गिक प्रतिभा के बल पर आगे नही आना चाहिये? नौकरियां तो नौकरियां पर अब तो पदोन्नतियों में भी आरक्षण का प्रावधान कर दिया गया है। वह भी सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के विरूद्ध जाकर। संविधान में संशोधन करके। क्या कांग्रेस ऐसी ही व्यवस्था को बनाये रखना चाहती है? सोनिया जी के बयान से देश के उस प्रत्येक नागरिक को निराशा हुई है जो कांग्रेस को देश के हित के लिये सत्ता ही नही बल्कि जीवन का बलिदान करने वाली पार्टी के रूप में जानता है।

आज देश में बदलाव की लहर है। सत्ता के बदलाव की नही, व्यवस्था के बदलाव की। हर जाति और वर्ग का व्यक्ति एक पारदर्शी व्यवस्था चाहता है, भ्रष्टाचार से मुक्त, समान अवसरों से युक्त और न्याय पर आधारित व्यवस्था की समाज को दरकार है। अब न तो आरक्षण जैसे मुद्दे लोगों को वोट देने के लिये प्रेरित कर सकते है और न ही मुफ्त में साइकिल और कम्प्यूटर बांटने वाले। यदि ऐसा होता तो उत्तरप्रदेश में कांग्रेस 3 दशकों से सत्ता से बाहर नही होती। देश में विगत 10 वषों से कांग्रेस पार्टी का शासन है और स्वतंत्र भारत के इतिहास में वह इस वक्त सबसे कमजोर दशा में है, ऐसे में सिर्फ कांग्रेस ही जातिगत आरक्षण को समाप्त कर आर्थिक आधार पर लागू करने का जोखिम ले सकती है। कांग्रेस ने जब-जब भी जोखिम लेकर व्यवस्थाओं को बदला है, लोगों ने उसे अपने सिर आँखों पर बिठाया है। जनार्दन द्विवेदी की बातों में काफी गहराई और पार्टी तथा समाज का हित छुपा हुआ है। गत वर्ष सर्वोच्च न्यायालय ने सजायाफ्ता सांसदों और विधायकों की सदस्यता समाप्त करने और उनके चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने का फैसला दिया था। इस फैसले के बाद सारे राजनीतिक दल एक हो गये थे और सरकार इस फैसले के विरूद्ध अध्यादेश लेकर आ गई थी। राहुल गाँधी ने उस अध्यादेश को फाड़कर फेंक देने का जो साहस दिखाया था वैसा ही साहस उन्हे जातिगत आरक्षण के मामले में दिखाने की आवश्यकता है।

आज जाति के आधार पर आरक्षण से देश के लोगो को बाँटा जा रहा हैं और जाति के नाम से उन लोगो को भी आरक्षण मिल रहा हैं जिनके हालात सबसे अच्छे हैं और जो गरीब जनरल है उनको कुछ नही मिल रहा है में आपसे पूछना चाहता हूँ क्या जाति के नाम पर आरक्षण सरकारी नौकरी और स्कूल एडमिशन मिलना चाहिये .. . इस msg को इतना शेयर करे जिससे ये प्रधानमंत्री तक पहुचे ..अपना ओपिनियन और वोट दे विजिट करे |www.reservationkillsindia.in

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